फितरत
खुशी की खोज में घर से थे निकले,
पर हाय रे किस्मत ! गम ही मिले।
साहिल की रेत पर , चला था घरौंदा बनाने,
मगर तोड़ डाला सागर की मौजों ने ।
बनाने वालों को कितना दर्द है,
मौजों को क्या पता है ?
प्यार भरे दिल तोड़ना हसीनों की ये अदा है।
काश ! इस जहां में कोई होता अपना
जिस से कह पाता दर्दे - दिल का फसाना।
पहले ना तुम थे ना था मैं !
सिर्फ थे हम ।
गुजरते लम्हों के साथ बांटा करते थे गम,
पर ऐ दोस्त ! अब क्या हो गए हो ?
जिंदगी की भीड़ में शायद खोने लगे हो।
मौसम का बदलना अगर है कुदरत !
तो शायद ! समझने लगा हूं तुम्हारी फितरत।
........दिनेश कुमार दीपक
खुशी की खोज में घर से थे निकले,
पर हाय रे किस्मत ! गम ही मिले।
साहिल की रेत पर , चला था घरौंदा बनाने,
मगर तोड़ डाला सागर की मौजों ने ।
बनाने वालों को कितना दर्द है,
मौजों को क्या पता है ?
प्यार भरे दिल तोड़ना हसीनों की ये अदा है।
काश ! इस जहां में कोई होता अपना
जिस से कह पाता दर्दे - दिल का फसाना।
पहले ना तुम थे ना था मैं !
सिर्फ थे हम ।
गुजरते लम्हों के साथ बांटा करते थे गम,
पर ऐ दोस्त ! अब क्या हो गए हो ?
जिंदगी की भीड़ में शायद खोने लगे हो।
मौसम का बदलना अगर है कुदरत !
तो शायद ! समझने लगा हूं तुम्हारी फितरत।
........दिनेश कुमार दीपक



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