नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए भूगोल ऑनर्स पार्ट थर्ड के महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न:- वान थ्यूनेन की कृषि अवस्थित सिद्धांत की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर:- वान थ्युनेन का कृषि अवस्थी सिद्धांत संभवत विश्व का पहला ऐसा सिद्धांत था जो नगरीय भूमि उपयोग तथा ग्रामीण कृषि भूमि उपयोग की अवधारणा एक साथ चित्रित एवं विकसित किया है। इस सिद्धांत के द्वारा वान थ्युनेन ने विश्व के विकासशील अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी है। उसका यह सिद्धांत बाजार या शहर केंद्र के चारों ओर भूमि उपयोग आवर्त तथा दूरी संबंधों पर आधारित था। आधुनिक विद्वानों एवं वैज्ञानिकों ने वान थ्युनेन के इस सिद्धांत को आधार मानकर कृषि विकास एवं बाजार व्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन को विकसित करने का प्रयास किया है।
वान थ्युनेन की कृषि अवस्थित सिद्धांत कृषि भूमि की उपयोगिता , फसलों का लाभकारी मूल्य , परिवहन तथा बाजार से दूरी आदि अवधारणाओं को ध्यान में रखकर प्रतिपादित किया गया है और इसके लिए उन्होंने निम्न मान्यताओं का सहारा लिया है:-
I) इन्होंने एक ऐसे एकाकी प्रदेश की कल्पना की जिसके केंद्र में एक नगर विकसित होगा जिसके चारों ओर विभिन्न प्रकार के भूमि उपयोग के अलग-अलग छ: सकेंद्र वलय विकसित हो जाएंगे तथा इस क्षेत्र से होने वाली उपज का यही केंद्र बाजार होगा।
II) इस क्षेत्र में जलवायु भूमि, मिट्टी की उर्वरता आदि एक सामान होगी अर्थात सभी जगह एक सा प्राकृतिक वातावरण होगा।
III) केंद्रीय भाग में नगरीय आबादी एवं नगर के अतिरिक्त शेष चारों ओर ग्रामीण आबादी होगी ।
IV) कृषक का लाभ तीन परिवर्ती राशियों(variables) के संबंधों पर निर्भर करेगा जिसका सूत्र निम्न है-
P = V - (E + T)
P = कृषक का लाभ
V = वस्तु का विक्रय मूल्य
E = उत्पादन की लागत
इस सूत्र के आधार पर वान थ्यूनेन ने दो नियम प्रतिपादित किए-
a) प्रत्येक प्रकार की कृषि पेटी की बाहरी दूरी परिवहन की लागत हटाते हुए लाभ के द्वारा निर्धारित की जाएगी।
b) प्रत्येक प्रकार की कृषि पेटी की आंतरिक दूरी कृषि के अधिक लाभ देने वाले विकल्पों द्वारा निर्धारित की जाएगी। जिस प्रकार की फसल से अधिक लाभ प्राप्त होगा उसी का उत्पादन आंतरिक क्षेत्र में किया जाएगा।
V) वान थायुनेन ने क्षेत्र , समय एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखकर एक ही प्रकार के परिवहन साधन की उपलब्धता की चर्चा की है।
वान थयुनेन की कि कृषि अवस्थिति सिद्धांत की आलोचना
i) वान थ्युनेन का सिद्धांत कल्पनाओं पर आधारित है इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। इन्होंने जिस वृत्त खंड की चर्चा की है वैसा प्रतिरूप कहीं नहीं पाया जाता है।
ii) नदी की कल्पना करने से वृत्तखंड वलय न होकर समांतर हो जाता है जो सिद्धांत के मूल अवधारणा को ही खत्म कर देता है।
iii) कृषि क्षेत्र के मध्य में एक नगर हो तथा उसके आसपास छोटे-छोटे नगर ना हो ऐसा संभव नहीं है।
भारत के संदर्भ में वान थ्यूनेन की कृषि अवस्थिति सिद्धांत का मूल्यांकन:-
भारत की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए इस सिद्धांत का क्रियान्वयन संभव नहीं है क्योंकि-
1. यहां वैसा कोई प्रदेश नहीं है जो भौगोलिक दृष्टि से एक समान वातावरण एवं धरातलीय समानता रखता हो।
2. भारतीय गांव में कृषि बेटियों का क्रमिक विकास संभव नहीं है क्योंकि यहां मिट्टी की उत्पादकता एक समान नहीं है।
3. भारत में कृषि आधारित आबादी की अधिकता के कारण निर्वहन कृषि का प्रचलन अधिकतर है।साथ ही यहां कृषि से जुड़ी हुई बहुत सी समस्याएं हैं ,जैसे - यातायात की समस्याएं, सिंचाई, बिजली, आधुनिक खाद - बीज आदि। अतः बाजार आधारित फसलों का उत्पादन कम होता है।
4. भारत में कृषि के साथ पशुपालन का महत्व नहीं है क्योंकि चारागाह के लिए भूमि की व्यवस्था नहीं है।
संक्षेप में, वर्तमान समय में वान थ्यूनेन के मॉडल को पूरी तरह अपनाया नहीं जा सकता है किंतु कुछ पुरानी चीजों को यदि छोड़ दिया जाए या उनमें संशोधन कर दिया जाय तो कृषि आधारित ग्रामीण व्यवस्था को विकसित कर गांव की तस्वीर बदली जा सकती है।
प्रश्न:- वान थ्यूनेन की कृषि अवस्थित सिद्धांत की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर:- वान थ्युनेन का कृषि अवस्थी सिद्धांत संभवत विश्व का पहला ऐसा सिद्धांत था जो नगरीय भूमि उपयोग तथा ग्रामीण कृषि भूमि उपयोग की अवधारणा एक साथ चित्रित एवं विकसित किया है। इस सिद्धांत के द्वारा वान थ्युनेन ने विश्व के विकासशील अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी है। उसका यह सिद्धांत बाजार या शहर केंद्र के चारों ओर भूमि उपयोग आवर्त तथा दूरी संबंधों पर आधारित था। आधुनिक विद्वानों एवं वैज्ञानिकों ने वान थ्युनेन के इस सिद्धांत को आधार मानकर कृषि विकास एवं बाजार व्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन को विकसित करने का प्रयास किया है।
वान थ्युनेन की कृषि अवस्थित सिद्धांत कृषि भूमि की उपयोगिता , फसलों का लाभकारी मूल्य , परिवहन तथा बाजार से दूरी आदि अवधारणाओं को ध्यान में रखकर प्रतिपादित किया गया है और इसके लिए उन्होंने निम्न मान्यताओं का सहारा लिया है:-
I) इन्होंने एक ऐसे एकाकी प्रदेश की कल्पना की जिसके केंद्र में एक नगर विकसित होगा जिसके चारों ओर विभिन्न प्रकार के भूमि उपयोग के अलग-अलग छ: सकेंद्र वलय विकसित हो जाएंगे तथा इस क्षेत्र से होने वाली उपज का यही केंद्र बाजार होगा।
II) इस क्षेत्र में जलवायु भूमि, मिट्टी की उर्वरता आदि एक सामान होगी अर्थात सभी जगह एक सा प्राकृतिक वातावरण होगा।
III) केंद्रीय भाग में नगरीय आबादी एवं नगर के अतिरिक्त शेष चारों ओर ग्रामीण आबादी होगी ।
IV) कृषक का लाभ तीन परिवर्ती राशियों(variables) के संबंधों पर निर्भर करेगा जिसका सूत्र निम्न है-
P = V - (E + T)
P = कृषक का लाभ
V = वस्तु का विक्रय मूल्य
E = उत्पादन की लागत
इस सूत्र के आधार पर वान थ्यूनेन ने दो नियम प्रतिपादित किए-
a) प्रत्येक प्रकार की कृषि पेटी की बाहरी दूरी परिवहन की लागत हटाते हुए लाभ के द्वारा निर्धारित की जाएगी।
b) प्रत्येक प्रकार की कृषि पेटी की आंतरिक दूरी कृषि के अधिक लाभ देने वाले विकल्पों द्वारा निर्धारित की जाएगी। जिस प्रकार की फसल से अधिक लाभ प्राप्त होगा उसी का उत्पादन आंतरिक क्षेत्र में किया जाएगा।
V) वान थायुनेन ने क्षेत्र , समय एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखकर एक ही प्रकार के परिवहन साधन की उपलब्धता की चर्चा की है।
वान थयुनेन की कि कृषि अवस्थिति सिद्धांत की आलोचना
i) वान थ्युनेन का सिद्धांत कल्पनाओं पर आधारित है इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। इन्होंने जिस वृत्त खंड की चर्चा की है वैसा प्रतिरूप कहीं नहीं पाया जाता है।
ii) नदी की कल्पना करने से वृत्तखंड वलय न होकर समांतर हो जाता है जो सिद्धांत के मूल अवधारणा को ही खत्म कर देता है।
iii) कृषि क्षेत्र के मध्य में एक नगर हो तथा उसके आसपास छोटे-छोटे नगर ना हो ऐसा संभव नहीं है।
भारत के संदर्भ में वान थ्यूनेन की कृषि अवस्थिति सिद्धांत का मूल्यांकन:-
भारत की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए इस सिद्धांत का क्रियान्वयन संभव नहीं है क्योंकि-
1. यहां वैसा कोई प्रदेश नहीं है जो भौगोलिक दृष्टि से एक समान वातावरण एवं धरातलीय समानता रखता हो।
2. भारतीय गांव में कृषि बेटियों का क्रमिक विकास संभव नहीं है क्योंकि यहां मिट्टी की उत्पादकता एक समान नहीं है।
3. भारत में कृषि आधारित आबादी की अधिकता के कारण निर्वहन कृषि का प्रचलन अधिकतर है।साथ ही यहां कृषि से जुड़ी हुई बहुत सी समस्याएं हैं ,जैसे - यातायात की समस्याएं, सिंचाई, बिजली, आधुनिक खाद - बीज आदि। अतः बाजार आधारित फसलों का उत्पादन कम होता है।
4. भारत में कृषि के साथ पशुपालन का महत्व नहीं है क्योंकि चारागाह के लिए भूमि की व्यवस्था नहीं है।
संक्षेप में, वर्तमान समय में वान थ्यूनेन के मॉडल को पूरी तरह अपनाया नहीं जा सकता है किंतु कुछ पुरानी चीजों को यदि छोड़ दिया जाए या उनमें संशोधन कर दिया जाय तो कृषि आधारित ग्रामीण व्यवस्था को विकसित कर गांव की तस्वीर बदली जा सकती है।
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