तन्हाइयां
प्रेम का दीप जलाकर,
खुद खो गई अंधेरे में,
मैंने तुझे कहां नहीं ढूंढा ?
मगर मिली नहीं दिन के उजाले में !
अगर जाना ही था ?
तो क्यूं बनाया अपना !
तूने ही तो दिखाया था प्रेम का सपना।
सोचता था ! तुम हो हुस्न की मल्लिका,
क्या वादे- ए- मोहब्बत तोड़ना,
यही है तेरे प्यार का सलीका?
तेरे बिना सूना है दिल का संसार,
काश! आ जाओ बनकर सावन की फुहार।
.............दिनेश कुमार दीपक
प्रेम का दीप जलाकर,
खुद खो गई अंधेरे में,
मैंने तुझे कहां नहीं ढूंढा ?
मगर मिली नहीं दिन के उजाले में !
अगर जाना ही था ?
तो क्यूं बनाया अपना !
तूने ही तो दिखाया था प्रेम का सपना।
सोचता था ! तुम हो हुस्न की मल्लिका,
क्या वादे- ए- मोहब्बत तोड़ना,
यही है तेरे प्यार का सलीका?
तेरे बिना सूना है दिल का संसार,
काश! आ जाओ बनकर सावन की फुहार।
.............दिनेश कुमार दीपक



0 Comments