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हिंदी शायरी (तन्हाइयां)

            तन्हाइयां

प्रेम का दीप जलाकर,
 खुद खो गई अंधेरे में,
मैंने तुझे कहां नहीं ढूंढा ?
 मगर मिली नहीं दिन के उजाले में !
अगर जाना ही था ? 
तो क्यूं बनाया अपना !
तूने ही तो दिखाया था प्रेम का सपना।
सोचता था ! तुम हो हुस्न की मल्लिका,
क्या वादे- ए- मोहब्बत तोड़ना, 
यही है तेरे प्यार का सलीका?
तेरे बिना सूना है दिल का संसार,
काश! आ जाओ बनकर सावन की फुहार।
                            .............दिनेश कुमार दीपक


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