नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी भूगोल ऑनर्स पार्ट थर्ड के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न:- वनोन्मूलन के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:- वन पारिस्थितिक तंत्र के चक्र को नियंत्रित एवं नियमित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं , अतः वनों का विनाश इसे असंतुलित कर पर्यावरण अवकर्षण का प्रमुख कारण बनता है। जिसके तात्कालिक ही नहीं बल्कि दूरगामी परिणाम भी होते हैं जो मानव सभ्यता के लिए संकट का कारण बन जाते हैं।
वनोन्मूलन के प्रमुख निम्न दुष्प्रभाव है:-
1 . जलवायु का असंतुलित हो जाना
वन जलवायु के नियंत्रक होते हैं क्योंकि यह आद्रता में वृद्धि करते हैं वर्षा में सहायक होते हैं तथा तापमान को नियंत्रित करते हैं। वनोन्मूलन से वायुमंडलीय नमी में कमी आ जाती है जिस कारण वर्षा की मात्रा निरंतर कम हो जाती है तथा तापमान में वृद्धि होने लगती है। जिसके फलस्वरूप शुष्कता का विस्तार होता है और मरुस्थलीकरण प्रारंभ हो जाता है। थार के मरुस्थल का कारण वनोन्मूलन भी है। वनोन्मूलन से कार्बन तथा नाइट्रोजन चक्र का क्रम भंग हो जाता है। वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा स्थिर रहता है किंतु वनोन्मूलन के कारण ऑक्सीजन की मात्रा वायुमंडल में कम हो रही है तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो रही है जिसका परिणाम ग्लोबल वार्मिंग के रूप में देखने को मिल रहा है।
2 . बाढ़ के प्रकोप में वृद्धि
वन जल को नियंत्रित रखते हैं और पर्याप्त मात्रा में उपयोग भी करते हैं किंतु वनोन्मूलन से जल ढालों पर तीव्र गति से बह कर मैदानी भागों में बाढ़ का कारण बन जाता है। बिहार की नदियों में बाढ़ का प्रकोप इसका उदाहरण है।
3. मृदा अपरदन में वृद्धि
वन मृदा के संरक्षक होते हैं क्योंकि इनकी जड़ें मिट्टी को जकड़े रहती है जिससे वह संगठित रहती है। किंतु वनोन्मूलन के कारण मृदा को जकड़ कर रखने का कार्य करने वाली जड़ें उपलब्ध नहीं होती है जिस कारण मृदा अपरदन सुगमता से अधिक मात्रा में होता है। ये अपरदित मृदा वर्षा जल के साथ बह कर जलाशयों तथा नदियों में जाकर उन्हें गंदला तथा उथला बना देती है जिसके फलस्वरूप नदियों में बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। वहीं दूसरी ओर वनस्पति के अभाव में मरुस्थलीकरण तेजी से होने लगता है।
4 . प्राकृतिक जल स्रोतों का सूखना तथा भूमिगत जल के स्तर का गिरना
वनों के विनाश से अनेक प्राकृतिक जल स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल स्तर नीचे जा रहा है। वर्षा की कमी और तापमान में वृद्धि तथा वृक्षों द्वारा वाष्पीकरण रुकने की प्रक्रिया समाप्त होने से इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
5. वन्यजीवों का विनाश
वर्तमान विश्व में वनोन्मूलन से अनेक वन्यजीव विलुप्त हो गए हैं तथा अनेक प्रजातियों की संख्या में एवं प्राकृतिक संसाधनों में कमी आ गई है।
उपरोक्त दुष्प्रभावों के अतिरिक्त पशुचारण क्षेत्रों की कमी , प्राकृतिक सुरम्यता में कमी , प्रदूषण में वृद्धि, बंजर भूमि का विनाश, आदिवासी जातियों की आवास की समस्या आदि भी वन विनाश के दुष्परिणाम हैं।
प्रश्न:- वनोन्मूलन के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:- वन पारिस्थितिक तंत्र के चक्र को नियंत्रित एवं नियमित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं , अतः वनों का विनाश इसे असंतुलित कर पर्यावरण अवकर्षण का प्रमुख कारण बनता है। जिसके तात्कालिक ही नहीं बल्कि दूरगामी परिणाम भी होते हैं जो मानव सभ्यता के लिए संकट का कारण बन जाते हैं।
वनोन्मूलन के प्रमुख निम्न दुष्प्रभाव है:-
1 . जलवायु का असंतुलित हो जाना
वन जलवायु के नियंत्रक होते हैं क्योंकि यह आद्रता में वृद्धि करते हैं वर्षा में सहायक होते हैं तथा तापमान को नियंत्रित करते हैं। वनोन्मूलन से वायुमंडलीय नमी में कमी आ जाती है जिस कारण वर्षा की मात्रा निरंतर कम हो जाती है तथा तापमान में वृद्धि होने लगती है। जिसके फलस्वरूप शुष्कता का विस्तार होता है और मरुस्थलीकरण प्रारंभ हो जाता है। थार के मरुस्थल का कारण वनोन्मूलन भी है। वनोन्मूलन से कार्बन तथा नाइट्रोजन चक्र का क्रम भंग हो जाता है। वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा स्थिर रहता है किंतु वनोन्मूलन के कारण ऑक्सीजन की मात्रा वायुमंडल में कम हो रही है तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो रही है जिसका परिणाम ग्लोबल वार्मिंग के रूप में देखने को मिल रहा है।
2 . बाढ़ के प्रकोप में वृद्धि
वन जल को नियंत्रित रखते हैं और पर्याप्त मात्रा में उपयोग भी करते हैं किंतु वनोन्मूलन से जल ढालों पर तीव्र गति से बह कर मैदानी भागों में बाढ़ का कारण बन जाता है। बिहार की नदियों में बाढ़ का प्रकोप इसका उदाहरण है।
3. मृदा अपरदन में वृद्धि
वन मृदा के संरक्षक होते हैं क्योंकि इनकी जड़ें मिट्टी को जकड़े रहती है जिससे वह संगठित रहती है। किंतु वनोन्मूलन के कारण मृदा को जकड़ कर रखने का कार्य करने वाली जड़ें उपलब्ध नहीं होती है जिस कारण मृदा अपरदन सुगमता से अधिक मात्रा में होता है। ये अपरदित मृदा वर्षा जल के साथ बह कर जलाशयों तथा नदियों में जाकर उन्हें गंदला तथा उथला बना देती है जिसके फलस्वरूप नदियों में बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। वहीं दूसरी ओर वनस्पति के अभाव में मरुस्थलीकरण तेजी से होने लगता है।
4 . प्राकृतिक जल स्रोतों का सूखना तथा भूमिगत जल के स्तर का गिरना
वनों के विनाश से अनेक प्राकृतिक जल स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल स्तर नीचे जा रहा है। वर्षा की कमी और तापमान में वृद्धि तथा वृक्षों द्वारा वाष्पीकरण रुकने की प्रक्रिया समाप्त होने से इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
5. वन्यजीवों का विनाश
वर्तमान विश्व में वनोन्मूलन से अनेक वन्यजीव विलुप्त हो गए हैं तथा अनेक प्रजातियों की संख्या में एवं प्राकृतिक संसाधनों में कमी आ गई है।
उपरोक्त दुष्प्रभावों के अतिरिक्त पशुचारण क्षेत्रों की कमी , प्राकृतिक सुरम्यता में कमी , प्रदूषण में वृद्धि, बंजर भूमि का विनाश, आदिवासी जातियों की आवास की समस्या आदि भी वन विनाश के दुष्परिणाम हैं।


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