.......... गणेश प्रसाद "अकेला"
"देश हमारा"
है , यह भारत देश हमारा,
सब देशों से जो है ,न्यारा।
सावन के आते ही,
छाती जहां हरियाली।
वसंत के आते ही,
गाती कोयल कू....कू..... काली।
जटा से बहती, जहां गंगा की धारा,
है, यह भारत देश हमारा।
चांदनी जहां, अमृत बरसाती,
रजनी आंखों में, काजल लगाती।
शबनम जिसका, मुख धुलाता,
सागर जिसका, पैर पखारता।
सूरज जहां हंस कर, करता सवेरा,
है ,यह भारत देश हमारा।
रवि जिसका सूत है, अपना,
उस सूत का है, चांद खिलौना।
शशि के पीछे, रवि है दीवाना,
जिसे चाहता है, रवि अपनाना।
जहां शशि को, रवि है प्यारा,
है,यह भारत देश हमारा।
बहती जहां आंचल में, गंगा-गोदावरी,
कहीं हलचल मचाती, यमुना और कावेरी।
बना है आज, जिसका हिमालय ताज,
वही बचाता आज, उनकी है लाज।
जहां हर बच्चा है, आंखों का तारा,
है, यह भारत देश हमारा।
जन्में जहां अनेकों,"शास्त्री और लाल",
आंधी में भी जिसने जलाया,"गांधी"का मशाल।
उनके बिना आज बना है, इसका यह हाल,
मां के लिए तोड़ दिया जो, जेल का नभताल।
था, जो मां का अति दुलारा,
है, यह भारत देश हमारा।
वसुंधरा थी रोती, रोता था आकाश,
निकला वहीं से, एक दिव्य प्रकाश।
चमक उठी, पृथ्वी और आकाश,
है नाम जिनका, "कर्मवीर"लोकनायक जयप्रकाश।
मां..... मां.... कह कर, जिसने पुकारा,
है,यह भारत देश हमारा।
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