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                               .......... विनोद यादव
            ( हिन्दी शिक्षक, ब्राइट कैरियर स्कूल, पूर्णिया,बिहार)
कोरोना पीड़ित जो चले गए और जो बचे हुए हैं उनके लिए समर्पित --
शीर्षक --"श्रद्धांजलि और सद्भावना "
          कब्र  तू  मौन  पड़ा  रहा
        अनगिन  हसरत  को  समेटे
       उफनाती  उमंगों   को  लपेटे
       जज्बातों  के  गागर  में  सिमटे
        लेटे  तू   मौन    पड़ा     रह
       कब्र   आज   तू   मौन  पड़ा  रह ।
 तूने  भी   न  सोचा   होगा
 इतनी   जल्दी  जाना  होगा
 छोड़  सभी को  रोना  होगा
        सारी  आस्था  आज  हिल  गई
        सभ्यता  कहीं  और  बिखर  गई
        बौद्ध  संस्कृति  कहीं   खो   गई
        लगता  है  अब  ये  भी  मिट गई
 दुनिया   को   तू   मोड़  गया
 संकट  में   सबको  छोड़  गया
         मानव  को  मानव  तौल   रहा
         कंधों    न  कोई     उठा   रहा
         अब    छूने  तक  से  डर  रहा
 सब्र  के   साए  में  जीता  रह
 अश्कों  को  अपने  पीता  रह
  लेटे    मौन    पड़ा        रह
  कब्र  आज  तू   मौन  पड़ा  रह
          कुछ  तो  कह ,  कह   दे   कब्र
          मानव  का  नहीं  टूटता    सब्र
          बिखर बिखर फिर   यह  जुड़ता
          इतिहास  मानवता  की यह रचता
          अपनी   पहचान  कायम ही रखता
           तिमिर   सदा  छाया  नहीं  रहता
 आशा    का   तू   दीप  जला
 फिर     से  होगा  नया  विहान
 कब्र  कह  रहा  मुझे   पहचान ।

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